बेचारा बचपन -बचपन को देखा है बड़ी ही नजदीक से अपने घर में ,गली में,झुग्गी झोपडी में, कारखानों में, होटलों में.कंही खुशिया है तो कंही गम.कोई सपने को जी रहा है तो कोई सपने देखने से भी कतराता है.एक बचपन मैंने देखा अपने घर से थोड़ी दूर नंगे बदन धुल में सना, भूखा-प्यासा ,धुप में बिलबिलाता एक छोटा सा बचपन.मेरा बचपन बहुत प्यारा था पर उसका बचपन बहुत नीरस.क्या हम कुछ कर सकते है इस बचपन को थोडा बेहतर बनाने के लिए.बस थोडा सा समय और प्यार बदल सकती है इनकी दुनिया. मैंने तो sochna suru कर दिया है आप कब बहार निकलेगें अपनी सपनो की दुनिया से.
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